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कविता

छूटत कमान बान बंदूकरु कोकबान

भूषण


छूटत कमान बान बंदूकरु कोकबान,
मुसकिल होति मुरचानहू की ओट में।
ताही समय सिवराज हुकुम कै हल्ला कियो,
दावा बांधि द्वेषिन पै बीरन लै जोट में।
'भूषन' भनत तेरी हिम्मति कहाँ लौं कहौं
किम्मति इहाँ लगि है जाकी भटझोट में।
ताव दै दै मूछन, कंगूरन पै पाँव दै दै,
अरि मुख घाव दै-दै, कूदि परैं कोट में।।


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